फिलिस्तीन मुद्दा: न्यूयार्क घोषणा, UNGA वोटिंग और हमास–फिलिस्तीन अथॉरिटी के मतभेद
फिलिस्तीन मुद्दा दशकों से वैश्विक राजनीति का सबसे पुराना और संवेदनशील विवाद बना हुआ है। इजरायल–फिलिस्तीन संघर्ष, दो–राज्य समाधान, बस्तियों का विस्तार और फिलिस्तीनी गुटों के बीच गहरे मतभेद इस समस्या को और जटिल बनाते हैं। हाल ही में 12 सितंबर 2025 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में ‘न्यूयार्क घोषणा’ को अपनाया जाना इस संघर्ष में एक नया अध्याय खोलता है। भारत सहित 142 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। यह न केवल अंतरराष्ट्रीय सहमति का संकेत है बल्कि भारत की लंबे समय से चली आ रही संतुलित विदेश नीति का भी परिचायक है।
1. पृष्ठभूमि: इजरायल–फिलिस्तीन संघर्ष और इसकी ऐतिहासिक जड़ें
फिलिस्तीन मुद्दे की नींव 20वीं सदी के मध्य में बसी, जब 1948 के ‘नक्बा’(महाविनाश) के दौरान लाखों फिलिस्तीनी विस्थापित हुए और इजरायल का गठन हुआ। 1967 के युद्ध के बाद इजरायल ने गाज़ा, वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम पर कब्ज़ा कर लिया, जिसने शांति की संभावनाओं को और दूर कर दिया।
हालिया घटनाक्रम:
- 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले में 1,200 से अधिक इजरायली मारे गए और 250 बंधक बनाए गए।
- इसके जवाब में इजरायल ने गाज़ा पर भीषण बमबारी की, जिससे हजारों फिलिस्तीनी नागरिकों की जान गई और मानवीय संकट गहरा गया।
संयुक्त राष्ट्र का रुख:
संयुक्त राष्ट्र और अधिकांश देश दो–राज्य समाधान का समर्थन करते हैं। लेकिन इजरायल की नई बस्तियां और फिलिस्तीनी गुटों के आपसी मतभेद इस प्रक्रिया को बार–बार बाधित करते हैं।
2.न्यूयार्क घोषणा: शांति प्रक्रिया के लिए रोडमैप
जुलाई 2025 में फ्रांस और सऊदी अरब द्वारा सह–आयोजित उच्चस्तरीय सम्मेलन से उत्पन्न ‘न्यूयार्क घोषणा’ को 17 देशों ने तैयार किया। यह प्रस्ताव शांति के ठोस, समयबद्ध और अपरिवर्तनीय उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
मुख्य बिंदु:
- गाज़ा युद्धविराम और मानवीय सहायता: तत्काल संघर्ष विराम, सभी बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता का निर्बाध प्रवाह।
- दो–राज्य समाधान: एक स्वतंत्र, संप्रभु और लोकतांत्रिक फिलिस्तीन राज्य की स्थापना। गाज़ा और वेस्ट बैंक का एकीकरण बिना कब्ज़े और घेराबंदी के।
- हमास पर नियंत्रण: गाज़ा में हमास की सत्ता समाप्त कर हथियार PA को सौंपने की शर्त।
- इजरायल की जिम्मेदारी: बस्तियों का विस्तार रोकना, फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देना और दो–राज्य समाधान पर सार्वजनिक प्रतिबद्धता जताना।
- अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण मिशन: UNSC के तहत अस्थायी मिशन, जो नागरिक सुरक्षा और शासन PA को सौंपने में मदद करे।
यह घोषणा 22 सितंबर 2025 को होने वाले संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के लिए मार्ग प्रशस्त करती है, जहां कई देश फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता देने की तैयारी में हैं।
3. UNGA वोटिंग: वैश्विक सहमति और भारत की भूमिका
वोटिंग परिणाम:
- 142 देश पक्ष में – भारत, अधिकांश यूरोपीय देश, अरब देश और वैश्विक दक्षिण।
- 10 देश विपक्ष में – अमेरिका, इजरायल समेत कुछ अन्य।
- 12 देश तटस्थ – कुछ यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी देश।
भारत का रुख:
- भारत का यह समर्थन उसकी दीर्घकालिक नीति के अनुरूप है, जो दो–राज्य समाधान और फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है।
- पहले भारत ने गाज़ा संघर्ष पर कई प्रस्तावों में तटस्थता बरती थी, लेकिन इस बार समर्थन देकर उसने स्पष्ट संदेश दिया है।
- यह भारत की संतुलित कूटनीति है – इजरायल के साथ रक्षा–तकनीक संबंध बनाए रखते हुए फिलिस्तीन के न्यायोचित अधिकारों का समर्थन।
4. हमास–फिलिस्तीन अथॉरिटी (PA) के बीच समानताएं और मतभेद
फिलिस्तीन की राजनीति दो ध्रुवों पर टिकी है –
- हमास (गाज़ा पर नियंत्रण, 1987 में स्थापित, इस्लामवादी)
- PA (वेस्ट बैंक पर नियंत्रण, 1994 में स्थापित, फतह पार्टी द्वारा संचालित, धर्मनिरपेक्ष)
समानताएं:
- इजरायली कब्ज़े का अंत
- फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी
- स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य
मुख्य मतभेद:
- विचारधारा: हमास इजरायल को मान्यता नहीं देता; PA कूटनीतिक समाधान में विश्वास रखता है।
- रणनीति: हमास सशस्त्र संघर्ष और ईरान के समर्थन पर निर्भर; PA अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानूनी–कूटनीतिक रणनीति अपनाता है।
- सत्ता संघर्ष: 2007 में गाज़ा से PA को बाहर करना, एकता सरकार के प्रयास असफल।
- अंतरराष्ट्रीय छवि: हमास को कई देश आतंकवादी संगठन मानते हैं; PA को वैध प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
5. घोषणा पर प्रतिक्रियाएं और वैश्विक प्रभाव
- PA: घोषणा को शांति की दिशा में बड़ी उपलब्धि बताया, इसे हमास की शक्ति कम करने वाला कदम माना।
- हमास: प्रस्ताव को खारिज कर “फिलिस्तीनी प्रतिरोध के खिलाफ साजिश” बताया।
- इजरायल: कड़ी निंदा; पीएम नेतन्याहू ने इसे “राजनीतिक सर्कस” कहा।
- अमेरिका: इसे “हमास को उपहार” और “प्रचार स्टंट” बताया।
- यूरोप और अरब देश: फ्रांस, जर्मनी, सऊदी अरब ने इसे शांति का रोडमैप करार दिया।
- वैश्विक प्रभाव: अमेरिका और इजरायल का अलग–थलग पड़ना, बस्तियों के खिलाफ यूरोपीय प्रतिबंध, और फिलिस्तीन मान्यता की गति बढ़ना।
6. विश्लेषण: चुनौतियां और संभावनाएं
‘न्यूयार्क घोषणा’ और UNGA वोट फिलिस्तीन मुद्दे में एक नई सामूहिक इच्छा शक्ति को दर्शाते हैं। फिर भी चुनौतियां गंभीर हैं:
- फिलिस्तीनी एकता: हमास और PA के मतभेद समाधान की राह में सबसे बड़ी बाधा।
- इजरायल की प्रतिबद्धता: नेतन्याहू सरकार का कड़ा रुख शांति प्रक्रिया को रोक सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय तंत्र की सीमाएं: UNGA प्रस्ताव गैर–बाध्यकारी हैं, इसलिए क्रियान्वयन राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।
भारत के लिए यह संतुलनकारी भूमिका उसकी वैश्विक साख को मजबूत कर सकती है, खासकर वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में।
7. निष्कर्ष: आगे की राह
न्यूयार्क घोषणा केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि फिलिस्तीन मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक चेतना का संकेत है। यह प्रस्ताव हमास–मुक्त शासन, PA को मजबूत करने और दो–राज्य समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। लेकिन स्थायी शांति तभी संभव होगी जब फिलिस्तीनी गुट एकजुट हों, इजरायल अपनी जिम्मेदारियां निभाए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय सक्रिय रूप से निगरानी करे। 22 सितंबर 2025 का UN शिखर सम्मेलन इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है।
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